बिहार की वर्तमान राजनिती में कौन मजबूत, पढिये ‘रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स’ की रिपोर्ट
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को हराने के बाद भाजपा ने अपना रुख बिहार की ओर मोड़ लिया है। नवंबर 2025 के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है। इसके लिए एनडीए और महागठबंधन, दोनों गठबंधनों के दलों ने कमर कस ली है। एनडीए में भले ही भाजपा की स्थिति मजबूत दिख रही हो, लेकिन जेडीयू के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इन्कंबेंसी नजर आ रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाले आरजेडी के युवा नेता तेजस्वी यादव सत्ता परिवर्तन के लिए जोरदार तैयारी करते दिख रहे हैं। इसी संदर्भ में बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का आकलन ‘रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स’ संस्था ने किया है।
बिहार सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले भाजपा-जेडीयू सरकार के दूसरे मंत्रिमंडल का विस्तार 26 फरवरी को संपन्न हुआ। इस दौरान भाजपा के सात विधायकों ने मंत्रिपद की शपथ ली। मंत्रिमंडल में शामिल नए चेहरों में विभिन्न समुदायों के विधायकों को जगह दी गई है। खास बात यह है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दिया है और कहा है कि उन्होंने ‘एक व्यक्ति, एक पद’ नीति का पालन किया है। इसके बाद वे राज्य में सक्रिय रूप से दिखाई दे रहे हैं।
बिहार में भाजपा की संख्या
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 110 में से 74 सीटों पर शानदार जीत हासिल की थी। इसके बाद हुई उपचुनाव में भाजपा ने आरजेडी की कुढनी विधानसभा सीट हासील की, जिससे बिहार विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या 75 हो गई। भाजपा ने विकासशील इंसान पार्टी के तीन विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया। 2024 में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने दो और सीटें जीतीं, जिससे विधानसभा में भाजपा की सदस्य संख्या अब 80 तक पहुंच गई है।
आरजेडी ने हासिल की थी सबसे अधिक सीटें
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से केवल 43 सीटों पर उसे सफलता मिली थी। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले आरजेडीने विधानसभा की 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 80 सीटों पर शानदार जीत हासिल की। हालांकि, उपचुनाव में दो सीटें गंवाने के बाद पार्टी के विधायकों की संख्या 78 रह गई है। कांग्रेस ने बिहार में 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल 19 सीटों पर ही उसे जीत मिली। वर्तमान में बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है, जबकि कांग्रेस, आरजेडी और वामपंथी विचारधारा के दल विपक्ष में हैं।
भाजपा के लिए बिहार का चुनाव चुनौतीपूर्ण?
महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में भाजपा की जीत से उत्पन्न गति का लाभ उठाते हुए एनडीए ने बिहार में 243 में से 225 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनाव चुनौतीपूर्ण होगा। क्योंकि आरजेडी के युवा नेता तेजस्वी यादव ने राज्य में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया है। इसके अलावा सत्ताधारी दल को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ सकता है।
‘पलायन रोको, रोजगार दो’ जैसे मुद्दों को विपक्षी दल काँग्रेस ने उठाया है। जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही है। साथ ही उनकी राजनीतिक भूमिकाओं के कारण उनकी विश्वसनीयता कुछ हद तक कम हुई है, जिसका असर एनडीए को हो सकता है।
भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को सौंपी है। पिछली बार विनोद तावड़े को भाजपा ने बिहार का प्रभारी बनाकर भेजा था। इसके बाद उन्होंने कुल छह दलों को एकजुट करते हुए एनडीए गठबंधन मजबूत किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिर से एनडीए में लाने में भाजपा को सफलता मिली थी। इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विनोद तावड़े थे।
पिछले 11 वर्षों में भाजपा ने उत्तर भारत में अच्छी पकड़ बना ली है। धीरे-धीरे बिहार में उनका प्रभाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
राजद की रणनीति
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव राज्य के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ-साथ वे मतदाताओं की समस्याओं को समझ रहे हैं। अन्य राज्यों में चुनावों को प्रभावित करने वाली योजनाओं की तर्ज पर आरजेडी ने बिहार में ‘माई-बहन मान योजना’ लाने की घोषणा की है। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर तेजस्वी यादव ने ‘बेटी’ योजना की घोषणा की है। बेटी (BETI) यानी B – Benefit, E – Education, T – Training, I – Income, इस योजना के तहत राज्य की लड़कियों को विश्वस्तरीय शिक्षा दी जाएगी। विश्वस्तरीय प्रशिक्षण देकर रोजगार सृजन के लिए पहल की जाएगी। महिलाओं की सभी समस्याओं का समाधान किया जाएगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाएं लाई जाएंगी, ऐसा तेजस्वी यादव ने कहा है।
नीतीश कुमार को लेकर भाजपा की सतर्कता
गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले समय में बिहार का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बारे में कोई संकेत नहीं दिया। साथ ही, फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार आए थे। अपने भाषण में उन्होंने नीतीश कुमार को ‘लाडला मुख्यमंत्री’ कहकर जिक्र किया, लेकिन यह नहीं कहा कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।
केंद्रीय बजट में बिहार को प्राथमिकता
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मिथिलांचल, कोशी और सीमांचल जैसे बिहार के तीन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाए जाने वाले मखाने (कमल के बीज) के लिए एक अलग बोर्ड की घोषणा की थी। इसके माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ और किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। पूर्वी भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी, एंटरप्रेन्योरशिप एंड मैनेजमेंट’ नामक राष्ट्रीय संस्थान बिहार में स्थापित किया जाएगा। उड़ान योजना के तहत राज्य की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बिहार में नए हवाई अड्डे बनाए जाएंगे। इसके अलावा पटना हवाई अड्डे का विस्तार भी किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नीतीश कुमार की प्रशंसा
फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार दौरा हुआ था। पूर्णिया के पास भागलपुर में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साथ में रोड शो किया। इसके बाद हुए कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार को ‘लाडला मुख्यमंत्री’ कहकर उनकी तारीफ की। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अपने भाषण में कहा कि प्रधानमंत्री ने बिहार का ख्याल रखा और इसके लिए उनका आभार व्यक्त किया।
एनडीए गठबंधन के पास नीतीश कुमार के अलावा कोई विकल्प नहीं
बिहार में भाजपा में नीतीश कुमार जैसा कोई नेता उभरकर सामने नहीं आया है जो पार्टी को नेतृत्व दे सके। साथ ही, नीतीश कुमार को बिहार में अति पिछड़ा वर्ग का नेता माना जाता है। इसलिए वर्तमान स्थिति में एनडीए गठबंधन के पास नीतीश कुमार के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भाजपा ने नीतीश कुमार की ही जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को राज्य का उपमुख्यमंत्री किया है। लेकिन जानकारों का मानना है कि जब तक नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं, तब तक ही अति पिछड़ा वर्ग के वोट भाजपा के पास रहेंगे।
बिहार में कांग्रेस की रणनीति
कांग्रेस ने भी बिहार चुनाव पर अभी से ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 5 फरवरी को दिल्ली में मतदान के दिन पटना का दौरा किया था।
बिहार कांग्रेस में बड़ा बदलाव किया गया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह के पास जो जिम्मेदारी थी, वह अब दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को सौंपी गई है। कांग्रेस की ओर से दलित और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की जा रही है। जिस तरह आरजेडी के पास ओबीसी-मुस्लिम समुदाय की वोट बैंक है, उसी तरह कांग्रेस भी जातीय समीकरण मजबूत करने की दिशा में कदम उठा रही है।
एनडीए की ‘मिशन 225’ जैसी योजनाओं को चुनौती देने के लिए अपनी रणनीति बनाने के संकेत दिए हैं। साथ ही, नए प्रदेश अध्यक्ष ने 31 मार्च 2025 तक संगठन को मजबूत करने का लक्ष्य रखा है।
कन्हैया कुमार की “नौकरी दो, पलायन रोको” यात्रा बिहार में बेरोजगारी और पलायन की समस्या पर प्रकाश डालने और इसके खिलाफ जनजागरूकता फैलाने के लिए आयोजित की गई है। साथ ही “सबको शिक्षा, सबको काम, हर बिहारी को बराबर का आत्मसम्मान” का नारा भी दिया गया है।
कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी
बिहार में कांग्रेस की संगठनात्मक संरचना अभी भी कमजोर है। गांवों और तालुका स्तर पर पार्टी का नेटवर्क मजबूत नहीं दिखता। इसलिए पार्टी ने पहले बिहार के प्रभारी नियुक्त किए, फिर प्रदेश अध्यक्ष बदला। साथ ही, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और सांसद पप्पू यादव बिहार में सक्रिय हो गए हैं।
भाजपा, जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी जैसे एनडीए गठबंधन के दलों का जातीय समीकरण मजबूत दिखता है। भाजपा उच्च वर्ग और कुछ ओबीसी मतदाताओं को आकर्षित करती है, जेडीयू का यादवेतर ओबीसी और कुछ दलित मतदाताओं पर प्रभाव है, जबकि एलजेपी का दलित समुदाय में जनाधार है। महागठबंधन में आरजेडी का मुस्लिम और यादव मतदाताओं पर बड़ा प्रभाव है। लेकिन कांग्रेस की कोई निश्चित वोट बैंक दिखाई नहीं देती।
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का राष्ट्रीय प्रभाव है, लेकिन बिहार में स्थानीय चेहरा मजबूत नहीं है। कन्हैया कुमार जैसे नेता उभर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी व्यापक स्वीकार्यता नहीं मिली है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) बिहार में सबसे सक्रिय और प्रभावशाली कम्युनिस्ट पार्टी मानी जाती है। पार्टी का औरंगाबाद, जहानाबाद और गया जैसे जिलों में अच्छा प्रभाव है। 2020 के चुनाव में पार्टी ने 12 सीटें जीती थीं। 2 मार्च 2025 को पटना के गांधी मैदान में पार्टी की ओर से एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार का चुनाव जाति और धर्म पर नहीं, बल्कि लोगों की समस्याओं पर होना चाहिए। झारखंड में 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाती है, उसी तरह बिहार में भी दी जानी चाहिए। साथ ही, महिलाओं और बुजुर्गों को झारखंड की तरह हर महीने निश्चित राशि मिलनी चाहिए।
जन सुराज पार्टी का बिहार में उदय
जन सुराज पार्टी की राजनीति पारंपरिक जातीय समीकरणों पर आधारित नहीं है, बल्कि शिक्षा, रोजगार और शराबबंदी हटाने जैसे मुद्दों पर केंद्रित है। ऐसा पार्टी का कहन है। यह रणनीति बिहार के युवाओं और बदलाव की अपेक्षा करने वाले मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश करती दिख रही है। 2024 में बिहार विधानसभा के तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज निर्वाचन क्षेत्रों में हुए उपचुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी, लेकिन उसे 10 प्रतिशत वोट मिले। इससे साफ है कि इस पार्टी का आधार अभी मजबूत नहीं हुआ है।
प्रशांत किशोर ने बिहार की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। साथ ही, उन्होंने कुल उम्मीदवारों में से 40 प्रतिशत सीटों पर महिला उम्मीदवारों को मौका देने की बात कही है। इससे बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है।
बिहार में वर्तमान स्थिति में एनडीए गठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है, लेकिन महागठबंधन की ओर से भी बड़ी हलचलें शुरू हो गई हैं। बिहार का चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे पर नहीं, बल्कि विकास के मुद्दे पर लाने पर महागठबंधन के घटक दलों का जोर रहेगा। हालांकि, बिहार के सिंहासन पर एनडीए का मुख्यमंत्री होगा या महागठबंधन का, यह देखना रोचक होगा।
रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स
( नोट: रुद्र रिसर्च एंड एनालिटिक्स यानी ‘रुद्र’ एक ऐसी संस्था है जो मतदानपूर्व और मतदानोत्तर सर्वेक्षण और ग्राउंड रिसर्च करती है। संस्था ने हाल ही में बिहार की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का आकलन किया है।)